एक ही परिवार में जब बेटी और बेटे दोनों का जन्म होता है तो माता-पिता बडे प्यार से अपने बच्चों के लिए नाम का चुनाव करते हैं। फिर ताउम्र वही नाम बच्चे के लिए उसकी पहचान बन जाता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि शादी के बाद लडकी को अपने पिता का सरनेम छोडकर अपने नाम के साथ पति का नाम या उपनाम लगाना पडता है, जबकि लडके के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती। पहले किसी स्त्री ने इस परंपरा पर कोई सवाल नहीं उठाया कि ऐसी परंपरा केवल स्त्रियों के लिए ही क्यों है? लेकिन अब भारतीय स्त्री के मन में यह सवाल सुगबुगाने लगा है। उसके मन में इस बात को लेकर बहुत व्याकुलता है कि उसके साथ ही यह भेदभाव क्यों किया जाता है? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें एक बार भारतीय समाज के अतीत में झांक कर देखना होगा कि स्त्री के साथ इस भेदभाव के लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं।