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नींद की गोली ले जा सकती है आत्महत्या की ओर

यदि आप सोने के लिए नींद की गोलियों पर निर्भर हैं तो सावधान हो जाइए। एक नए शोध में इस बात का खुलासा किया है कि जिन गोलियों की सहायता से लोग आराम की नींद लेते हैं, वह उन्हें आत्महत्या की ओर भी ले जा सकती है। चीन में हुए इस शोध से यह बात सामने आई है कि जो उम्रदराज लोग सोने के लिए नींद की गोली लेते हैं, उनके आत्महत्या करने की आशंका चार गुना तक बढ़ जाती है। इसके साथ ही शोध में यह भी पता चला कि तनाव को कम करने वाले और मानसिक बीमारियों में इस्तेमाल किए जाने वाले दवाओं के कारण भी रोगी में आत्महत्या की प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है। कैसे किया गया शोध इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने आत्महत्या की कोशिश कर चुके 85 महिला और पुरूषों का अध्ययन किया। शोध में शामिल सभी व्यक्ति 65 वर्ष से ज्यादा के थे। वैज्ञानिकों ने जब इसके रिकॉर्ड का अध्ययन किया तो पाया कि ये लोग नींद की गोली के आदी थे। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने जब गोली न लेने वाले उम्रदराज लोगों का अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि इनमें आत्महत्या कि प्रवृत्ति काफी कम थी।
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शाही मेहमाननवाजी

राजा-रजवाड़ों के दौर में अतिथि का स्वागत काफी अहमियत रखता था। अतिथि देवो भव: शायद यहीं ज्यादा लागू होता था। अब राज-पाट न रहने के बाद शाही घरानों ने अपने आरामगाह, महल, किले और हवेलियों को महंगे पांच सितारा हेरिटेज होटलों में तब्दील कर दिया है। आज भी यहां पहुंचकर उनकी परंपराओं, गर्मजोशी और खुसूस को आप महसूस कर सकते हैं। गुजरे दौर में.. हेरिटेज होटल और हवेलियों में जाना अपने आप में बीते वक्त में जाने का टिकट मिल जाने जैसा है। इसलिए यहां आकर आप खुद को किसी रॉयल गेस्ट से कम मत समझिएगा। यहां आर्किटेक्चर, फोटो, एंटीक सामानों का अथाह भंडार मिलेगा जो पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में आगे बढ़ रहा है। यकीन मानिए यहां की हर चीज इतिहास का एक अलग ही नजारा पेश करती है। इंडियन रॉयलटी यहां हर चीज से झलकती है। राजा की तरह भोज अगर जयपुर के रामबाग पैलेस की ही बात की जाए, तो यहां आकर कौन नहीं चाहेगा राजे-रजवाड़ों की तरह बैठकर भोजन करना। इतना ही नहीं खूबसूरत गार्डन में शैंपेन का लुत्फ, विंटेज कार में शहर की शाही सैर, रॉयल किचन और मल्टी क्यूजीन मैन्यू अपने आप में ना भूल पाने वाला अनुभव साबित होता है। ख्वाबनुम

मुझसे ही है मेरी पहचान

एक ही परिवार में जब बेटी और बेटे दोनों का जन्म होता है तो माता-पिता बडे प्यार से अपने बच्चों के लिए नाम का चुनाव करते हैं। फिर ताउम्र वही नाम बच्चे के लिए उसकी पहचान बन जाता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि शादी के बाद लडकी को अपने पिता का सरनेम छोडकर अपने नाम के साथ पति का नाम या उपनाम लगाना पडता है, जबकि लडके के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती। पहले किसी स्त्री ने इस परंपरा पर कोई सवाल नहीं उठाया कि ऐसी परंपरा केवल स्त्रियों के लिए ही क्यों है? लेकिन अब भारतीय स्त्री के मन में यह सवाल सुगबुगाने लगा है। उसके मन में इस बात को लेकर बहुत व्याकुलता है कि उसके साथ ही यह भेदभाव क्यों किया जाता है? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें एक बार भारतीय समाज के अतीत में झांक कर देखना होगा कि स्त्री के साथ इस भेदभाव के लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं।